चांदनी दीदी |
ये हैं, चांदनी दीदी....चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और पुरस्कारों से घिरी दिवारों के पीछे का संघर्ष बहुत ही दुखद है। आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व चांदनी दीदी का जन्म एक ऐसे परिवार में होता है। जिसका पेशा गांव-गांव और शहर-शहर जाकर खेल तमाशा दिखाना होता था।
जब एक छोटे बच्चे की उम्र स्कूल में पैर रखने की होती है। उसी उम्र से चांदनी दीदी अपने पिता जी के साथ खेल तमाशा करने लगी थी। उम्र के साथ-साथ समय बीता तो कुछ ही साल बाद, ये सफर दिल्ली तक पहुंच गया। किसी तरह परिवार का जीवनयापन खेल तमाशा दिखा कर चल रहा था। लेकिन अचानक से पिता की मृत्यु के बाद पूरी जिंदगी ही बदल गई। क्योंकि एक पिता अपने पीछे 3 बच्चों और पत्नी को छोड़ गया था।
अब चांदनी दीदी के जीवन का असली संघर्ष शुरू होता है। पिता के जाने के बाद, चांदनी दीदी को ही घर चलाना था, क्योंकि मां भी भारी भरकम काम करने में सक्षम नहीं थी। दीदी बताती है, कि सबसे पहले वह कबाड़ बिनने का काम शुरू करती हैं। कबाड़ से अच्छे पैसे न आने और पुलिस वालों की डांट फटकार की वजह से वह फूल बेचने का काम शुरू कर देती हैं। चांदनी दीदी कहती है, की वह रात के दो बजे सड़कों पर फूल बेंचा करती थी। क्योंकि उस समय लोग माॅल, बार, सिनेमा और पब जैसे जगहों से निकलते थे। लेकिन उस समय जब ठंड ज्यादा होती थी। और ठंडी के कपड़े नहीं होते थे। तो ज्यादातर दीवारों की ओट में या फिर दो गाड़ियों के बीच खड़े हो जाते थे। जिससे ठंड कम लगे। लेकिन जब इससे भी घर का जीवनयापन नहीं हो रहा था। तो अन्ततः भुट्टे बेचना शुरू कर दिया। इसके आगे दीदी बताती है, कि कई बार हाथ भी जल जाता था। लेकिन काम तो करना था। क्योंकि अपने साथ तीन और लोगों का पालन पोषण करना था।
इसके बाद चांदनी दीदी के ज़िन्दगी में एक और नया मोड़ आता है। क्योंकि चांदनी दी एक होशियार लड़की थी। जिसके कारण एक NGO ने इन्हें अपने ही जैसे झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने और मार्गदर्शन करने का काम सौंप देते हैं। लगातार दस वर्षों तक मन लगाकर और सभी को साथ लेकर, उस NGO के साथ काम करती रहती है। लेकिन जब दस वर्षों के बाद चांदनी दी की उम्र 18 वर्ष पूरी होती है। तो NGO से यह कह कर निकाल दिया जाता है, कि ये NGO 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए है। निकालें जाने के बाद चांदनी दीदी बताती है, कि उन्हें उस समय ऐसा महसूस हुआ था। की 10 साल पहले जहां से मेरी कहानी खत्म हूई थी। आज फिर वहीं से शुरू हो रही है। और मैं फिर से भुट्टे बेचने लगी।
लेकिन काम करने का जुनून और हौसला दोनों डगमगाए नहीं। क्योंकि जो जिन्दगी उन्होंने स्वयं जी थी। वह ज़िन्दगी और किसी को जीते नहीं देखना चाहतीं थीं। जिसके बाद अपने पति देव प्रताप सिंह जी के साथ उन्होंने Voice of Slum नामक NGO की शुरुआत की और आज लगभग कुछ ही वर्षों में 10 हजार ज़िन्दगियां बदल दी। इन 10 हजार बच्चों के स्नातक तक की पूरी पढ़ाई की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली हैं। हाल ही में चांदनी दी को कर्मवीर चक्र से सम्मानित किया गया है। बाकी आप तस्वीरो में दिख रहे, सम्मानों से अंदाजा लगा सकते हैं। तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय प्रणब मुखर्जी जी ने भी डिनर पर बुलाया था।
अगर आप भी "Voice of Slum" के बच्चों की मदद करना चाहते हैं। तो "Voice of Slum" के वेबसाइट पर जाकर बच्चों के लिए पैसे डोनेट कर सकते हैं।
चांदनी दीदी की कहानी सुनकर... मैं भावुक हो गई। ऐसे संघर्षशील लोग बहुत कम होते हैं। जो इतनी मुश्किलो का सामना करके अपने मुकाम को हासिल करते हैं।
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