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देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्टिकल-370 पर अपना एतिहासिक फैसला सुनाते हुए, केन्द्र द्वारा अनुच्छेद-370 को समाप्त करने के फैसले को सही ठहराया। 11 दिसंबर को आए इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा की अनुच्छेद-370 एक अस्थायी प्रावधान है। जिसे लागू करने के लिए केन्द्र सरकार बाध्य नहीं है। हालांकि अदालत नें केंद्र सरकार को आदेश देते हुए कहा है, की जल्द से जल्द जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दें। वहीं चुनाव आयोग को भी निर्देशित किया गया है, की वह 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव कराए।
लगातार 16 दिन तक चली
सुनवाई के बाद सोमवार को मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच
जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत से अनुच्छेद-370 को खत्म करने के केंद्र के फैसले
को बरकरार रखने का फैसला सुनाया। गौरतलब है कि 5 अगस्त, 2019, को केन्द्र सरकार ने
अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी बताते हुए, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों
में विभाजित कर दिया था। जिसके बाद 23 लोगो ने केन्द्र के इस फैसले को उच्चतम
न्यायालय में चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। और इस बात का उल्लेख किया था की
केन्द्र सरकार जम्मू कश्मीर के लोगों की इच्छा को अनदेखी कर रही है। और उनके
अधिकारों को खत्म कर रही है। केन्द्र के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देने
वाले इन 23 याचिकार्ताओं में जम्मू- कश्मीर के वकील, राजनेता, पत्रकार,
राजनीतिक पार्टिया, रिटायर्ड मेजर जनरल से लेकर, पूर्व आईएएस अधिकारी भी शामिल
थे।
लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला वैध
चुनौती देने वाले
याचिकाकर्ताओं का तर्क क्या है?
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- · संविधान
जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में किसी भी कानून में बदलाव करते समय राज्य सरकार की
सहमति को अनिवार्य बनाता है.
- जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं थी.
- राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधानसभा को भंग नहीं कर सकते थे।
- केंद्र ने जो किया है वह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और अंतिम साधन को उचित नहीं ठहराता है।
- केंद्र सरकार ने संसद में अपने बहुमत का उपयोग किया, और एक संपूर्ण राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बाँट दिया। ये संविधान के खिलाफ तो है ही, राज्य की संप्रभुता के भी खिलाफ है।
सरकार का इस पूरे मामले में
क्या पक्ष है?
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- · संविधान के तहत निर्धारित उचित
प्रक्रिया से कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। केंद्र के पास राष्ट्रपति का आदेश जारी
करने की शक्ति थी।
- अनुच्छेद 370 कोई विशेषाधिकार नहीं था, जिसे वापिस नहीं लिया जा सकता है।
- अनुच्छेद 370 को खत्म करने से राज्य के बाशिंदों को उनके मूल अधिकार मिले।
- जिस तरीके से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, वो बिल्कुल संवैधानिक था।
- ·जब संविधान सभा को डिज़ाल्व किया गया, तो संविधान सभा के सदस्य भी ये नहीं चाहते कि उनके कहने पर अनुच्छेद 370 को रहने दिया जाए, या हटा दिया जाए। क्योंकि आखिरी निर्णय राष्ट्रपति का होता और राष्ट्रपति अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
- जब भी राष्ट्रपति शासन होता है, तो देश की संसद राज्य की विधायिका की भूमिका निभाती है - और देश के सभी राज्यों के लिए ये बराबर है।
- दो अलग-अलग संवैधानिक अंग - राष्ट्रपति, राज्य सरकार की सहमति से - जम्मू-कश्मीर के संबंध में संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति रखते हैं।
- जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश अस्थायी रूप से बनाया गया है। उसे जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा। जबकि लदाख केंद्रशासित प्रदेश ही बना रहेगा।
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