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भईया नमस्ते, अब यहां तक आ गए हो। तो अन्दर भी थोड़ा सा झांक (देख) लो। शायद कुछ पसंद ही आ जाए। मैं अपने बारे में कुछ बताऊ...? 🤔 चलो ठीक है, बताता हूं, मेरा नाम प्रिंस है, मैं शिक्षा, न्याय और धर्म की नगरी संगमनगरी प्रयागराज ( इलाहाबाद) से हूं। और अपनी शिक्षा के बारे में बात करु, तो मेरी बारवीं तक की पढ़ाई इलााहाबाद से ही हुई है। इसके बाद स्नातक तक की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में कि है। और वर्तमाान में, IIMC के JAMMU परिसर से डिप्लोमा कर रहा हूं। अब आप भी कुछ बताओं।😍
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देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्टिकल-370 पर अपना एतिहासिक फैसला सुनाते हुए, केन्द्र द्वारा अनुच्छेद-370 को समाप्त करने के फैसले को सही ठहराया। 11 दिसंबर को आए इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा की अनुच्छेद-370 एक अस्थायी प्रावधान है। जिसे लागू करने के लिए केन्द्र सरकार बाध्य नहीं है। हालांकि अदालत नें केंद्र सरकार को आदेश देते हुए कहा है, की जल्द से जल्द जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दें। वहीं चुनाव आयोग को भी निर्देशित किया गया है, की वह 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव कराए।
लगातार 16 दिन तक चली
सुनवाई के बाद सोमवार को मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच
जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत से अनुच्छेद-370 को खत्म करने के केंद्र के फैसले
को बरकरार रखने का फैसला सुनाया। गौरतलब है कि 5 अगस्त, 2019, को केन्द्र सरकार ने
अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी बताते हुए, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों
में विभाजित कर दिया था। जिसके बाद 23 लोगो ने केन्द्र के इस फैसले को उच्चतम
न्यायालय में चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। और इस बात का उल्लेख किया था की
केन्द्र सरकार जम्मू कश्मीर के लोगों की इच्छा को अनदेखी कर रही है। और उनके
अधिकारों को खत्म कर रही है। केन्द्र के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देने
वाले इन 23 याचिकार्ताओं में जम्मू- कश्मीर के वकील, राजनेता, पत्रकार,
राजनीतिक पार्टिया, रिटायर्ड मेजर जनरल से लेकर, पूर्व आईएएस अधिकारी भी शामिल
थे।
चुनौती देने वाले
याचिकाकर्ताओं का तर्क क्या है?
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सरकार का इस पूरे मामले में
क्या पक्ष है?
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कार्यक्रम समापन के बाद की फोटो |
कार्यक्रम के शुरुआत में IIMC की पुस्तक भेंट की गई |
कार्यक्रम के दौरान छात्र और छात्राएं |
चांदनी दीदी |
ये हैं, चांदनी दीदी....चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और पुरस्कारों से घिरी दिवारों के पीछे का संघर्ष बहुत ही दुखद है। आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व चांदनी दीदी का जन्म एक ऐसे परिवार में होता है। जिसका पेशा गांव-गांव और शहर-शहर जाकर खेल तमाशा दिखाना होता था।
जब एक छोटे बच्चे की उम्र स्कूल में पैर रखने की होती है। उसी उम्र से चांदनी दीदी अपने पिता जी के साथ खेल तमाशा करने लगी थी। उम्र के साथ-साथ समय बीता तो कुछ ही साल बाद, ये सफर दिल्ली तक पहुंच गया। किसी तरह परिवार का जीवनयापन खेल तमाशा दिखा कर चल रहा था। लेकिन अचानक से पिता की मृत्यु के बाद पूरी जिंदगी ही बदल गई। क्योंकि एक पिता अपने पीछे 3 बच्चों और पत्नी को छोड़ गया था।
अब चांदनी दीदी के जीवन का असली संघर्ष शुरू होता है। पिता के जाने के बाद, चांदनी दीदी को ही घर चलाना था, क्योंकि मां भी भारी भरकम काम करने में सक्षम नहीं थी। दीदी बताती है, कि सबसे पहले वह कबाड़ बिनने का काम शुरू करती हैं। कबाड़ से अच्छे पैसे न आने और पुलिस वालों की डांट फटकार की वजह से वह फूल बेचने का काम शुरू कर देती हैं। चांदनी दीदी कहती है, की वह रात के दो बजे सड़कों पर फूल बेंचा करती थी। क्योंकि उस समय लोग माॅल, बार, सिनेमा और पब जैसे जगहों से निकलते थे। लेकिन उस समय जब ठंड ज्यादा होती थी। और ठंडी के कपड़े नहीं होते थे। तो ज्यादातर दीवारों की ओट में या फिर दो गाड़ियों के बीच खड़े हो जाते थे। जिससे ठंड कम लगे। लेकिन जब इससे भी घर का जीवनयापन नहीं हो रहा था। तो अन्ततः भुट्टे बेचना शुरू कर दिया। इसके आगे दीदी बताती है, कि कई बार हाथ भी जल जाता था। लेकिन काम तो करना था। क्योंकि अपने साथ तीन और लोगों का पालन पोषण करना था।
इसके बाद चांदनी दीदी के ज़िन्दगी में एक और नया मोड़ आता है। क्योंकि चांदनी दी एक होशियार लड़की थी। जिसके कारण एक NGO ने इन्हें अपने ही जैसे झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने और मार्गदर्शन करने का काम सौंप देते हैं। लगातार दस वर्षों तक मन लगाकर और सभी को साथ लेकर, उस NGO के साथ काम करती रहती है। लेकिन जब दस वर्षों के बाद चांदनी दी की उम्र 18 वर्ष पूरी होती है। तो NGO से यह कह कर निकाल दिया जाता है, कि ये NGO 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए है। निकालें जाने के बाद चांदनी दीदी बताती है, कि उन्हें उस समय ऐसा महसूस हुआ था। की 10 साल पहले जहां से मेरी कहानी खत्म हूई थी। आज फिर वहीं से शुरू हो रही है। और मैं फिर से भुट्टे बेचने लगी।
लेकिन काम करने का जुनून और हौसला दोनों डगमगाए नहीं। क्योंकि जो जिन्दगी उन्होंने स्वयं जी थी। वह ज़िन्दगी और किसी को जीते नहीं देखना चाहतीं थीं। जिसके बाद अपने पति देव प्रताप सिंह जी के साथ उन्होंने Voice of Slum नामक NGO की शुरुआत की और आज लगभग कुछ ही वर्षों में 10 हजार ज़िन्दगियां बदल दी। इन 10 हजार बच्चों के स्नातक तक की पूरी पढ़ाई की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली हैं। हाल ही में चांदनी दी को कर्मवीर चक्र से सम्मानित किया गया है। बाकी आप तस्वीरो में दिख रहे, सम्मानों से अंदाजा लगा सकते हैं। तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय प्रणब मुखर्जी जी ने भी डिनर पर बुलाया था।
अगर आप भी "Voice of Slum" के बच्चों की मदद करना चाहते हैं। तो "Voice of Slum" के वेबसाइट पर जाकर बच्चों के लिए पैसे डोनेट कर सकते हैं।
Source: Google भारत और पाकिस्तान के बीच स्थित कश्मीर घाटी को अक्सर भारतीय उपमहाद्वीप के मुकुट के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। अपनी मनमोह...